शोबन सिंह जीना : समय, सोच और लोग
डॉ० वी० डी० एस० नेगी
डॉ० प्रकाश लखेड़ा
१९३३ ई० में २४ वर्ष की युवा अवस्था में श्री जीना ने तत्कालीन नामी वकील रायबहादुर पं० लक्ष्मी दत्त पांडे के जूनियर के रूप में वकालत प्रारंभ की I मेहनत, लगन, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा एवं अध्ययनशीलता के गुणों से परिपूर्ण इस युवा ने अल्प समय में वकालत के क्षेत्र में अपना स्थान बनाया I
पिछड़े पर्वतीय क्षेत्र की विपन्नता के झंझावतो को परास्त कर आगे बढ़ते रहने की उत्कट आकांक्षा के पथिक एवं एक उदीयमान अधिवक्ता ने अपने व्यवसाय के प्रति निष्ठा के साथ-साथ जन सरोकारों से भी गहन सम्बन्ध बनाया I
सामाजिक संस्थाओ से जुड़ाव, लोक जीवन में रूचि का परिणाम था I जिला परिषद् के सदस्य के रूप में निर्वाचन एवं जिला परिषद् शिक्षा समिति का अध्यक्ष का दायित्व सफलतापूर्वक निर्वाह करना I तब अल्मोड़ा जनपद के विशाल भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आधुनिक पिथौरागढ़, चम्पावत एवं बागेश्वर जिलों का भू-भाग भी शामिल था I परिषद् के कार्य निर्वहन के दौरान शैक्षिक वातावरण का विस्तार करने की दृष्टि से इस पर्वतीय अंचल के अनेक सुदूर क्षेत्रों का दौरा करना, स्थानीय समस्याओं , जटिलताओं, कुरीतियों, पिछड़ेपन से साक्षात्कार भी हुआ I जीना जी ने महसूस किया की इन सबकी जड़ में अशिक्षा है I इस जमाने में शिक्षा का प्रसार कुछ ब्राह्मण परिवारों तक सीमित था I राजपूत वर्ग में तो कुछ चन्द परिवारों तक ही शिक्षा पहुँच पाई थी I राजपूत समाज में शिक्षा की कमी और व्याप्त कुरीतियों को निर्मूल करने की दृष्टि से जीना जी ने १९४७ में “कुमाऊँ राजपूत परिषद्” का गठन कर शिक्षित लोगों को समाजोत्थान में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित किया I
सन १९४२ में “राष्ट्रीय युद्ध मोर्चा” नामक संस्था द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के समाचारों को प्रसारित करने एवं मित्र राष्ट्रों के प्रति सहयोग एवं समर्थन की जनभावना जुटाने की दृष्टि से ‘पताका’ नाम का साप्ताहिक समाचार पत्र निकालने की योजना बनायीं गयी I प्रशासन द्वारा इसके सम्पादक का दायित्व जीना जी को दिया गया I हरकिशन लाल शाह को प्रबंधक बनाया गया I इस समाचार-पत्र के संयुक्त सम्पादक के रूप में मोहन चन्द्र जोशी, मोहनलाल वर्मा, तारादत्त पांडे तथा श्रीमती सरोजनी जोशी के नाम ज्ञात होते है I (ऋषि-१९९४)
“पताका” का उद्देश्य युद्ध समाचारों से लोगों को रूबरू कराना था I स्वतंत्रता आन्दोलन के समाचारों का प्रसारण इसमें प्रतिबंधित था लेकिन जीना जी अपने विवेक से इस समाचार पत्र के माध्यम से स्थानीय जन-समस्याओ को उजागार करने में सफल रहे I बहुत कम लोगों को पता है की श्री जीना को बर्तानवी सरकार ने “रायबहादुर” की पदवी से भी नवाजा I लेकिन जीना जी ने इस पदवी को कभी भी प्रतिष्ठा सूचक मान कर अपने नाम के साथ नहीं जोड़ा I (ऋषि-१९९४)
जीना जी के समय के प्रमुख वकीलों में पं० लक्ष्मीदत्त पांडे, गुरुदास साह, पं० मथुरादत्त जोशी, पीताम्बर तिवारी (डुबकिया), रामदत्त जी (चीनाखान), विपिन चन्द्र जोशी (चम्पानौला) जीना जी के गुरुभाई मनोहर सिंह कार्की आदि थे I जीना जी के प्रथम शिष्य गोवर्धन उप्रेती थे I श्री उप्रेती बताते हैं की १९५४ में अल्मोड़ा में मात्र २२ वकील थे I सन १९६० ई० तक जीना जी भी प्लीडर ही रहे I १९६० में वे वकील बने I उस काल में १४ वर्ष तक प्रैक्टिस करने के बाद ही कोई वकील प्लीडर का सर्टिफिकेट देने में सक्षम होता था I
राजनीतिक जीवन में पर्दापण भारतीय जनसंघ के मंच से हुआ I यधपि कई कांग्रेसी जीना जी को कांग्रेस में लाने के प्रयास करते रहे I लेकिन जीना जी सदैव कांगेस संस्कृति से संतुष्ट नहीं रहे I जीवन पर्यन्त जनसंघ की विचारधारा के संवाहक रहे I अल्मोड़ा में जनसंघ की स्थापना १९५२ ई० में हुई I इसके संस्थापक अध्यक्ष डॉ० भवानी दत्त पांडे एवं सचिव रामचंद्र जोशी रहे I बाद में जीना जी इस पार्टी में सक्रिय हुए और पुरे तन-मन-धन से पहाड़ में इस पार्टी के विस्तार के लिए आजीवन कार्य करते रहे I
जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में जीना जी ने अथक प्रयासों से पार्टी का जनाधार बढाया I जनसंघ के बैनर तले रामचन्द्र जोशी एवं गोविन्द सिंह बिष्ट को विधायक के रूप में विजयी बनाना जीना जी की बड़ी उपलब्धि थी I उनके समय में जनसंघ के कार्य को प्रभावी बनाने वाली टीम के लोगों में मोहनलाल वर्मा, चतुर सिंह बोरा, डॉ० प्रेम सिंह बिष्ट, गोविन्द सिंह बिष्ट, रामचन्द्र जोशी, मनोहर सिंह कार्की, कैप्टन जगत सिंह धपोला, मोतीराम सनवाल, फूलचन्द्र पंजाबी, हरीश चन्द्र सडाना, चंद्रशेखर जोशी, बंशीलाल वर्मा, गोपाल सिंह धपोला, प्रकाश चन्द्र ठुलघरिया, राजेन्द्र सिंह रौतेला, बलवंत सिंह भाकुनी, मोहन सिंह कपकोटी, जवाहर लाल साह, परसीलाल वर्मा, हेम चन्द्र साह, हीरा लाल गुप्ता, सूरज लाल गुप्ता आदि के नाम उल्लेखनीय हैं I
दूसरी पीढ़ी के लोगों में भगत सिंह कोश्यारी, नंदन सिंह कपकोटी, दीवान सिंह नगरकोटी, जगदीश सी० जोशी, खीमपाल सिंह मेहता, देवेन्द साह, शिवसिंह राणा, पूरन चन्द्र शर्मा, रणजीत सिंह भंडारी, किशन गुरूरानी, गोविन्द सिंह भंडारी के नाम गिने जा सकते हैं I
जीना जी के निकटतम शिक्षाविदों में अम्बादत्त पन्त, डॉ० मुरली मनोहर जोशी, नीलाम्बर जोशी, डॉ० एस० एस० बोहरा, डॉ० एम० पी० जोशी आदि नाम प्रमुख थे I जनसंघ के राष्ट्रीय नेताओं में पं० दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी बाजपेयी, बलराज मधोक, भाई महावीर, नानाजी देशमुख, डॉ० मुरली मनोहर जोशी उनके यहाँ आये I
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोगों में भी उनका गहरा सम्बन्ध रहा I प्रारंभिक दौर के संघ प्रचारकों में भगवान् जी, ज्योति जी, तिलक जी, ब्रह्मदेव शर्मा (भाई जी) का उनसे सतत संपर्क रहा I मा० श्री राजेंद्र बिष्ट, दत्तोपंत ठैगड़े, मधुसुदन देव, मोरोपंत पिंगले, लिमये जी, ओम प्रकाश जी, रतन जी, डॉ० नित्यानंद जी सरीखे राष्ट्रीय स्टार के प्रचारकों का समय-समय पर उनके घर आना जाना रहा I
जीना जी के दौर के जनसंघ समर्थको में रानीखेत क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में किशन सिंह (जनसंघ के टिकट पर चुनाव भी लड़े), जगदीश चन्द्र पन्त एडवोकेट, महेंद्र प्रताप सिंह एडवोकेट, देवीदत्त मैनाली, द्वाराहाट से प्यारेलाल साह, चौखुटिया क्षेत्र से जसवंत सिंह रौतेला (गनाई), मानसिंह चढ़ियाल (भटकोट), लखन सिंह बिष्ट (खत्याड़ी), नंदन सिंह बिष्ट (ढौन), तारादत्त हरबोला (महतगांव), चंद्रशेखर हरबोला (महतगाँव), ककलासौं पट्टी से बचे सिंह डंगवाल, बागेश्वर से राम सिंह परिहार, हयात सिंह गड़िया , भूपाल सिंह धपोला, लक्ष्मीलाल वर्मा, नारायण सिंह (गरुंड), पिथौरागढ़ से प्रेम सिंह सेन व् संतोष चन्द्र, काली कुमाऊँ से वंशीधर जी, डीडीहाट से गोविंद सिंह पांगती (चुनाव भी लड़े) I
वारामंडल के कार्यकर्ताओं में दलीप सिंह (भनोली), दान सिंह (दन्या), दान सिंह महरा (बाड़ेछीना), नारायण सिंह बिष्ट (सकार), तेज़ सिंह (धामस), गोपाल सिंह (कलटानी), धन सिंह मेर (गड़ापानी) के नाम उल्लेखनीय हैं I जीना जी के समय अल्मोड़ा नगर में महिला कार्यकर्ताओ की एक मजबूत टीम हुआ करती थी I इस टीम में श्रीमती गोविंदी बिष्ट, जानकी देवी, देवकी सिराड़ी, धनि बोरा, हेमंती भाकुनी, रमा जोशी, दीपा साह, अमिता जीना, हंसा तिवारी आदि प्रमुख कार्यकर्त्ता थी I
जीना जी सदैव ही पर्वतीय विकास के हिमायती रहे I हमेशा पर्वतीय निवासियों की समस्याओं के बारे में सोचते एवं लड़ते रहे I पर्वतीय विकास मंत्री के रूप में उनके द्वारा पूरे उत्तराखंड के सम्यक विकास की दृष्टि से सभी विधायकों को धन आवंटन में कभी भी भेद-भाव नहीं किया गया I प्रथक पर्वतीय राज्य की सोच के पीछे भी पहाड़ के विकास की ही भावना थी I प्रथक राज्य की मांग १९५२ से ही छिटपुट उठती रही और बढ़ती रही I इसी भावना के तहत श्री प्रताप भैया ने “पर्वतीय जन परिषद्” का भी गठन किया था I अस्सी के दशक में उक्रांद द्वारा जोर-सोर से राज्य की मांग उठाई गयी तो उन्हें तीव्र जन समर्थन भी मिला I लेकिन कांग्रेस व् भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों ने इसके प्रति नकारात्मक रूख ही अपनाया I जीना जी ही एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने प्रथक राज्य के समर्थन के लिए भाजपा के केन्द्रीय आला नेताओं को राज़ी कराया I भाजपा के प्रथक राज्य के लिए संघर्ष में उतरने से राज्य आन्दोलन को गति मिली अन्तोगत्त्वा पृथक राज्य प्राप्त भी हुआ I पहाड़ के लोगों के प्रति जीना जी की सोच का दस्तावेज उनके द्वारा ज्ञापित ३४ सूत्री कार्यक्रम आज भी प्रासंगिक है I
इस मांग पत्र का आशय वन सम्पदा का उद्योगपतियों द्वारा किये जा रहे शोषण पर रोक, पहाड़ में ही वन सम्पदा आधारित उद्योग लगाया जाना, उद्योगों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिया जाना, वनों का कटान वैज्ञानिक प्रणाली से किया जाना, पंचायतों को वन रोपण के लिए उत्साहित करना, पेयजल, सिंचाई का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन कर पन-बिजली उत्पादन को बढ़ावा देना, भूमिहीनों एवं सैनिकों, शहीदों के आश्रितों को तराई-भावर में भूमि उपलब्ध कराना, हरिजनों एवं बेघर लोगों को भवन निर्माण हेतु मुफ्त भूमि एवं अनुदान, कृषि मजदूरों को सहकारी/ सरकारी एवं साहूकारों से ऋण माफ़ी तथा पहाड़ों में पूर्ण मघनिशेद I यातायात के साधनों में वृद्धि एवं पर्यटन विकास, लघु कुटीर उद्योग की स्थापना, रोड कण्ट्रोल एक्ट एवं वन सरंक्षण अधिनियम में सुधार कर क्षेत्र में विकास को गति देना, पूर्व सैनिक एवं शहीद सैनिकों के आश्रितों को सुविधाएँ एवं रोज़गार उपलब्ध कराना I कुमांऊ विश्वविद्यालय में मेडिकल कॉलेज स्थापित करना I प्रत्येक न्याय पंचायत में चिकित्सालयों का निर्माण तथा संचल स्वास्थ्य दल का निर्माण किया जाना आदि-आदि विचार उनके द्वारा ३० जून १९७५ को ज्ञापन के रूप में सरकार को प्रेषित किये गए I आज भी यदि वर्तमान सरकारें पहाड़ में जीना जी के ३४ सूत्रों को अमल में लायें तो निश्चित ही पहाड़ का विकास द्रुत गति से होगा I आभार: सुचना संकलन के लिए एम० जोशी संपादित उतरांचल हिमालय “ऋषि-१९९४”, “शक्ति’ मासिक प्रथम अंक, 2010 श्री गोवर्धन उप्रेती एडवोकेट, श्री पी० सी० जोशी पत्रकार, श्रीमती लता बोरा, डॉ० जगदीश चन्द्र न्योलिया के प्रति आभार I
Recent Comments